प्रेम पत्र: पुष्पा कर्ण द्वारा रचित कविता


भेज रही हूं एक फूल गुलाब का इस "प्रेम-पत्र" में
समाहित है खुशबू मेरी प्रीत की गुलाब के हर अर्क में
दिखता है चेहरा तुम्हारा इस प्रेम-पत्र में
अश्रुपूरित नयनों से मैं चेहरा तुम्हारा पढ़ नहीं पाती
कैसे बतलाऊं तुमको व्यथा हृदय की मैं कुछ समझ न पाती
सोचती हूं…लिख दूं मैं नाम तुम्हारे इक प्रेम की पाती।

कहना तो चाहूं बात हृदय की , पर मैं कह नहीं पाती
सोचती हूं…लिख दूं मैं नाम तुम्हारे इक प्रेम की पाती
मन की विरह वेदना लिख दूं,  या मैं लिख दूं मन है तुम बिन बैचैन प्रिये…
बैठी हूं प्यार में सुध -बुध बिसराए, क्या लिख दूं मैं सुबह को शाम प्रिये…
कैसे बतलाऊं तुमको व्यथा हृदय की मैं कुछ समझ न पाती
सोचती हूं…लिख दूं मैं नाम तुम्हारे इक प्रेम की पाती।

सूना है तुम बिन पलछिन, तुम बिन सूना दिन रैन प्रिये…
अधरों ने है साधी चुप्पी, बरसाते अश्रु हरपल मेरे नैन प्रिये…
कैसे बतलाऊं तुमको व्यथा हृदय की मैं कुछ समझ न पाती
सोचती हूं…लिख दूं मैं नाम तुम्हारे इक प्रेम की पाती
जीवन का मेरे सार भी तुम हो, तुम ही हो जीवन का आधार प्रिये…
मेरा प्यार भी तुम हो, तुम ही हो मेरा संसार प्रिये…
कैसे बतलाऊं तुमको व्यथा हृदय की मैं कुछ समझ न पाती
सोचती हूं… लिख दूं मैं नाम तुम्हारे इक प्रेम की पाती




Comments

Popular posts from this blog

A stranger: A poem by Preeti S Manaktala

Born Again: A poem by Gomathi Mohan

The book of my life: A poem by Richa Srivastava