Matritva: A poem by Rashmi Suman


मातृत्व समर्पण का पर्याय है,
स्वयं में यह पूरा अध्याय है
संस्कारों का पुस्तकालय है
कभी धरा कभी हिमालय है
कौशल्या भी यही और कैकई भी 
यशोदा भी यही और देवकी भी
ईश्वर की प्रतिनिधि का यह रूप है
त्याग, करुणा का ही स्वरूप है
मरुस्थल में यह है मीठे जल की नदी
माँ तो अपने आप में है एक सदी
प्रेम के संचयन, निर्वहन में होती है माहिर
इसकी ममता तो द्वापरयुग से है ज़ाहिर
माँ और मिट्टी एक जैसी
ज़िन्दगी यहीं तो अंकुरित होती
माँ बनना या होना सम्बन्ध नहीं,
बल्कि भाव है...



Comments

Post a Comment

Popular posts from this blog

A stranger: A poem by Preeti S Manaktala

The book of my life: A poem by Richa Srivastava

ASIA FORUM: CHAPTER 5-SRI LANKA: A Report by Ms. Neeti Parti