Matritva: A poem by Radha Shailendra

 


न जाने कौन से एहसास की दुनिया है
मातृत्व जिसे कहते है
अपनी ही खून से सींचकर
माँ जिसे पैदा करती है
उनकी मुस्कुराहट पर न जाने
कितनी प्रसव पीड़ा वो कुर्बान करती है!
कहते है जिसको माँ
उनके लिये तो बना कोई शब्द ही नहीं
नौ महीने के जज्बात खुद में समेटे
हर रिश्ते से पहले अपने बच्चों से नाता जोड़े
हर तकलीफ मुस्कुरा कर उठाती है
माँ कितने प्यार से इस रिश्तें को निभाती है!
माँ कहाँ खुद सो पाती है
अपने बच्चों की बलायें खुद पे ले आती है
बनकर दुआ हर पल साथ रहती है
माँ तो वो सावन है
जो हर पल बरसती है!
जिंदगी की धूप में एक घना छाया है
माँ के कदमों में ही सुख का खजाना है!
माँ है तो फरमाईशें है
माँ है तो हमारी महफूजीयत है
माँ धरती पर ईश्वर की प्रतिछाया है
माँ सिर्फ माँ है...!



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