Mausam: A poem by Chanda Singh


मौसम फिर से आएगा,
बहारों की खुमारी का।
मौसम ये भी जाएगा,
संक्रमण और महामारी का
पतझड़ का ये रूखा सा अंदाज,
माना कि कर जाएगा,
कईयों को निढ़ाल।
फिर ,दें जाएगा उम्र भर का मलाल।
पर, ना खोना तुम अपना धिरज,
क्योंकि किचड़ में ही खड़ा रह,
खिलता रहा हैं, यहां नीरज।
होगी फिर से हरियाली हर मुख पर,
दूर होगी छटा,
वक़्त की इस बदहाली की।
वसंत फ़िर से खिलेगा,
हर एक मन के आंगन में।
फिर से नाचेगा,
मन मयूर हो के सावन में।
मौसम फिर से आएगा,
बहारों की खुमारी का।
मौसम ये भी जाएगा,
संक्रमण और महामारी का।
माना कि ,
अभी और इस तपिश में झूलसना है,
माना कि,
अभी और सब्र के बांध को बांधे रखना है।
पर एक किरण रौशनी की,
हम सबको, आपने हृदय में जलाए अब भी रखना है।
क्योंकि,
मौसम फिर से आएगा,
बहारों की खुमारी का।
मौसम ये भी जाएगा,
संक्रमण और महामारी का।



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