Bhay: A poem by Rajinder Kaur

 भय से तुम भय न होना ।
जीवन में कभी धर्य न खोना ।
मन में जब डर घर करने लगे ।
आपा जब ये दिल खोने लगे ।
देखो यूँ हार न जाना ।
जग का यूँ तुम वार न सहना।
अपने पराये जब दिल दुखाने लगे ।
बातों से सिर्फ काम आने लगे ।
तब तुम भय मन से निकालों।
सब को एक समान बना लों ।
प्रेम का भय मन से निकालों ।
तन से ये अभिमान हटा दों।
मृत्यु तो इक दिन है आनी ।
जग में सब हैं संगी सारथी ।
डर के मन का मान न मारों ।
जग में सब से साथ निभालों।
मौत देखों जब भी आऐ ।
भय खड़ा होकर पछताऐं।



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