Amar Astitva: A poem by Mani Saxena

अग्नि की शय्या पर अंतिम विदा हैं लेतें,
देह मिट जाते,पर अस्तित्व ज़िंदा है रहतें।

सदियों से कालचक्र के बंधनों में हैं बँधते,
मौसम कभी पलटते कभी कितने युग बदलते,
आत्मा ने वस्त्र रूपी अनगिनत शरीर हैं बदले,
पर सत्य की अटलता,कभी न कोई बदल सके।

कभी पटेल, कभी गांधी, कभी तात्या टोपे,
आज़ाद तिरंगा देखने ख़ातिर कितने बींज रोपें,
कभी बोस, महाराणा प्रताप, कभी अब्दुल कलाम,
देश के प्रति उनके समर्पण को हम सबका सलाम।

स्वतंत्रता आंदोलन में फ़र्ज़ निभाती रहीं भारत कोकिला,
माथे पर गर्व का तिलक सजातीं शहीद वीरों की वीरांगना,
कभी कल्पना, मदर टेरेसा, कभी झाँसी की रानी,
ख़ुद मिट गयीं पर मिटी न उनके अस्तित्व की कहानी।

तुलसीदास, वेदव्यास, कृष्ण की श्रीमद् भगवद् गीता,
रामायण, महाभारत जैसे महान उपनिषदों के रचयिता,
सतयुग, द्वापर, त्रेता, कलयुग में लेखनी की ज़ुबानी,
सबके मुख पर आज भी उनके अमर अस्तित्व की निशानी।

मिट्टी से जन्मे थे मिट्टी में मिल जाएँगे,
क्या साथ लाए थे, क्या ही ले जाएँगे,
वक़्त यूँ ही करवट रहेगा बदलता,
नित नये शरीरों में ढलता रहेगा,
अग्नि की शय्या पर फिर विदा लेंगे अंतिम,
देह मिट जाएँगे, पर अस्तित्व अमर जगमगाएँगे पलछिन ।             




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