Saawan: A poem by Nisha Tandon

सावन की पहली मधुर फुहार में हर दरख्त पर पत्ते लग गए हैं हरे भरे 
आख़िरी साँस ले रही थी प्यासी धरती उसको जैसे जीवन नया मिले 

सूरज की पहली किरण पड़ते ही मानो बदल रहा प्रकृति का रूप  
कहीं बिखरी है शीतल छाया कहीं फैल रही है स्वर्णिम धूप 

भोर होते ही डार डार पर चहचहाने लगते है प्रेमी पंछी 
कोई गाए गीत मिलन के कोई बजा रहा कान्हा की बंसी

गीत सुरीले उनके सुनते ही घुल गया जैसे कानों में शहद 
मोर मोरनी नाचे बन में छोड़ मन की हर जद्दोजहद 

दिल में है तमन्ना जागी फूलों के झूलों पर ऊँची आज पींग भरें 
मन इतराए कभी तन इतराए जिस लम्हे अपनें पी का कोई ज़िक्र करें 

सावन के रिमझिम मौसम में हर पल बारात निकलती अरमानों की 
सूरज से आँख मिचोली खेलता इंध्रधनुष बढ़ा दे रौनक़ आसमानों की 

स्याह रात के आँचल में चंदा बदरा में इतरा कर लुक छुप जाए 
मस्तानी चाल में चलते चलते राह में मचल के कभी कभी वो रुक जाए 

मेघ बरसे इस तरह कि बूँदों से मन में उमंग की लहर उठे 
ख़याल यही कि इस मौसम से दो दीवानों की दूरी अब कैसे मिटे

बादलों ने गरज गरज के नाम तेरा यूँ पुकार लिया 
तड़प उठी है सावन में ऐसी कि लोक लाज सब त्याग दिया 

दिल मचले अब पिया मिलन को ,हर पल सताती है तनहाई 
बहक जाता है ईमान धर्म सब रूत जब लेती है अंगड़ाई 

तेरी व्याकुल नज़रों ने देखा मुझको कुछ शरमाई थोड़ा मैं घबराई
हवा के इक सुर्ख़ झोंके से मेरी प्रीत तुझसे है आज जा टकराई



Comments

Popular posts from this blog

A stranger: A poem by Preeti S Manaktala

Born Again: A poem by Gomathi Mohan

Petrichor: A poem by Vandana Saxena