Yahi hai jeevan ka Yatharth: A poem by Krishna Budakoti

जीवन नहीं मधु का प्याला
और न सुखों की फुलवारी है।
पग-पग में हैं बिखरे काँटे ,
आज तेरी, कल मेरी बारी है।
सुन ले तू हे पार्थ !
यही है जीवन का यथार्थ।।

यहाँ कोई अमर नहीं जग में,
हर जीव धरा पर नश्वर है ।
जीवन तो केवल मिथ्या है,
गर सत्य है तो वो मृत्यु है ।
सुन ले तू हे पार्थ !
यही है जीवन का यथार्थ।।

कितने युग आए, कितने बीते
पर ये सृष्टि कभी न बदली है।
सूर्य,चंद्र, आकाश न बदला ,
जो बदला वो मानव देह है ।
सुन ले तू हे पार्थ !
यही है जीवन का यथार्थ।।

कर्म किये जा फल की चिंता 
 तू मतकर हे इंसान ,
जन्म - मरण से मुक्ति पा ले,
तू बन जाये भगवान।
सुन ले तू हे पार्थ !
यही है जीवन का यथार्थ।।



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