मुस्कान: सीमा जैन द्वारा रचित कविता
कुछ मुस्कुराते फूल और  कुछ चुभते हुए कांटे हैं
जो ज़िन्दगी की बगिया ने हम सब को बांटे हैं 
आंसू न हों तो मुस्कान का कोई मोल ही न जाने 
दोनों से ही बनते हैं जीवन के ताने बाने 
दुःखों के बीच जब भी खुशियां नसीब होती हैं
सूरज की रौशनी सी मुस्कान चमक उठती है !
मुस्कुराने की वजह सबकी होती  है अलग अलग
कोई चाहे गाडी बंगला कोई सूखी रोटी में मस्त 
किसान की मेहनत से  जब फसल लहलहाए
मीठी सी मुस्कान उसके चेहरे पे छा जाए 
भक्त अपने इष्ट से कोई मुराद जब पाए
मनवा उसका ख़ुशी से तब झूम झूम जाए 
कोई दिल जब प्रेम की बरखा में भीग जाए
मुस्करा कर  ख़ुशी के वो गीत गुनगुनाए 
नए जन्मे शिशु के कोमल स्पर्श को पाकर
खिल उठे इक माँ का मुखड़ा पीड़ा सब भुला कर
दौलत के बाजार में ये शै नहीं है बिकती
भोले भाले चेहरों का श्रृंगार ये है करती 
हर  किसी की चाह बस इक मुस्कुराता गुलशन 
कॉंटों संग फूलों को पाना यही तो है जीवन !

 
 
 
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