Baadal: A poem by Akhilendra Tiwari
बादल ,बादल बन आया था बादल , बादल बन छाया था चहुँ ओर बरसकर बादल ने भारी कोहराम मचाया था बादल बादल बन लहर गया अरि मुंण्डो पर वह घहर गया चहुँ ओर मचा था चीत्कार अरि की सेना मे थी पुकार भागो , भागो अब जान बचा बादल आ पहुँचा समर द्वार बादल की टाँपों से प्रतिपल बादल की तड़क तड़कती थी गज, बाजि, सिपाही मुण्डों पर बिजली की तरह कड़कती थी अरि मुंण्डो पर गज सुंण्डो पर कब कहा गया कुछ पता नही चपला की तरह दिखा पल भर क्षण मे अदृश्य हो चला मही खन खन करती तलवारों मे भालों और ढाल कटारों मे वह काल रूप , वह महाकाल करता था समर , हजारों मे निज टापों से वह नाहर करता था रण मे अगवानी काली का खप्पर भरता था वह क्रांतिदूत , वह सेनानी