प्रेम पत्र: भारती खत्री द्वारा रचित कविता
 कँपकपाते हाथों से तुमने जब मुझे थमाया था
 तुमसे दूने कँपकपाते हाथों से थामा था मैंने
 सौम्य गुलाबी पृष्ठ पर रजत सी दमकती लिखावट
 पढ़ने से पहले ही बंद करके आंखें मूंद ली मैंने |
 सर्वत्र एकांत में हर चोर नजर से बचा कर
 उसके एक-एक शब्द को रोम-रोम में बसाना था
 डर था कहीं तीव्र गति से चढ़ती उतरती मेरी सांसों का स्पंदन
 सबके सामने गवाही ना दे बैठे मेरे पहले प्यार की |
 छत के एक सबसे खामोश कोने को चुना था मैंने
 सुनना चाहती थी प्रतिध्वनि उस में लिखे हर शब्द की
 ज्यादा कुछ कहते ही कहां हो तुम, तब भी वैसे ही थे
 बस लिख दिए थे वही जज्बात जिसकी मुझे चाह थी |
 आंखों में चमक और गालों पर गुलाबी दहक आ गई थी
 हर्ष के अतिरेक का एक फव्वारा मन में प्रस्फुटित हो उठा
 तब से आज तक तुम्हारी भार्या बन सौभाग्य गर्वित हूं
 मेरे मखमली बक्से में रखी है तुम्हारी अमानत,वो तुम्हारा पहला "प्रेम पत्र"...

 
 
 
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