प्रेम पत्र: रितु अग्रवाल द्वारा रचित कविता


प्रेम पत्र लिखने को,जब यह गुलाबी कागज उठाया।
तुम्हारा सुर्ख गुलाब सा,लरजता चेहरा नजर आया।
जिसे याद कर मेरी आँखों में,चाँद सा नूर उतर आया।
तेरा ज़िक्र आते ही मैने,सारा आलम महकता पाया।
दिल की कलम से,पन्ने पर लिखने बैठा चंद अल्फाज़।
धड़कने शोर करने लगीं और बजने लगे मधुर साज़।
इश्क की स्याही में,दिल को डुबोकर तेरा नाम लिखा।
आज हमने भी प्रेम पत्र के,जादुई नशे का स्वाद चखा। 
कलम चलती गई और मेरे एहसास शब्दों में ढलते गए, 
तेरी मोहब्बत को याद कर,मेरे अश्क भी पिघलते गए। 
जानता हूँ हमारा ये इश्क,नहीं कुछ ज्यादा पुराना है,
पर मैंने तो तुझे अपना नसीब,अपना खुदा माना है।
तुम लिफाफा देखकर ही खत का मजमून जान लोगी।
लिफाफे पर लिखे मेरे नाम पर इश्क का बोसा दोगी।
इस खत के बहाने ही सही,मैं तुम्हारी साँसों को छू लूँगा। 
तुम भी फिर खत लिखना,जिसे मैं रूह में ज़ज़्ब कर लूँगा।
दिलबर इन ज़मीनी फ़ासलों ने जीना दुश्वार कर दिया।
बस,यह प्रेम पत्र ही तो जिंदा रहने का सबब बन गया।





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