रिमझिम गिरे सावन: अंजली श्रीवास्तव द्वारा रचित कविता


शीतल,सुरभित,मंद पवन से,उल्लसित हो गया तन-मन,
सोंधी-सोंधी मिट्टी महके, कितना पावन लगता है आँगन,
भीषण उष्ण जेठ-आषाढ़ बीते,अब रिमझिम गिरे सावन!

सभी दिशाएं धुली- धुली सी,और धरती लगे अति पावन,
सबके हृदय उल्लसित होते,जब घिर आएं भूरे-काले घन,
बीच गगन में चमके चपला, जब रिमझिम गिरे सावन!

निर्मल हरित वस्त्र सब पहने,सद्यः स्नात से वन-उपवन,
तृष्णा धरा की मिटी अब सारी,पूरित हुए कृषक के स्वप्न,
धान,पान,कदली लहलहाते, जब रिमझिम गिरे सावन !

पीहू-पीहू की टेर लगाए पपीहा,डोलता फिरता है वन-वन,
टर्र-टर्र टर्राता फिरता मंडूक, झींगुर भी गाते अब झन -झन,
पंख खोल के नृत्य करे मयूर ,जब रिमझिम गिरे सावन!

नीम की डाल पर झूला पड़ गया,झूले बचपन संग यौवन,
भीगे बचपन आह्लाद भरा, सखियों के खनकते कंगन !
सबकी उमंगें तब चढ़ी हिंडोले, जब रिमझिम गिरे सावन!

गले मिल रही सारी सखियाँ,आ पहुँचीं सब बाबुल के आँगन,
नैहर के उल्लास के बीच में करतीं,याद पिया को मन ही मन,
मन बना हिंडोला उमंग-विरह मध्य,जब रिमझिम गिरे सावन!




Comments

Post a Comment

Popular posts from this blog

A stranger: A poem by Preeti S Manaktala

The book of my life: A poem by Richa Srivastava

ASIA FORUM: CHAPTER 11- MALDIVES: A Report by Dr. Bishakha Sarma