Beetey Pal: A poem by Rajkumar Gupta

 

बीते पलों में कोयल की कूक, कपोत की गुटर गूँ भी थी
कौओं की कांव-कांव के बीच चिड़ियाँओं की चूँ चूँ भी थी
सुख और दुख दोनों ही थे दिल को चहुं ओर से घेरे हुए
मरने के हालात भी थे और जीने की जुस्तजू भी थी
 
खोये हुए हैं वृद्ध अतीत में युवा देख रहे भविष्य का सपना
संसारी उलझे संसार में ज्ञानी कहते हैं कोई नहीं अपना
कर्म और भावना दोनों को साध सार्थकता ला जीवन में
भविष्य सँवरेगा पूर्ण होंगें सपने साथ देगी तेरी कल्पना
 
बीते पल से निकल, उड़ान भर, देख सिर पर खुला आसमान
प्रयत्नों से ही पूर्ण होंगे एक न एक दिन तेरे ये सारे अरमान
असशक्त भले ही हों तेरे छोटे कदम पर पाना है मंजिल को
बार-बार कहता हूँ तुझसे नींद से जाग और हो जा सावधान
 
अतीत की धरोहार हो गये हैं बीते पल और बीती बातें
मत कर कोशिश उनको जिंदा करने की निरर्थक होंगी फ़रियादें
बीते कल से जो चिपके, काँटों में उलझे और समय गंवाया
इमारत वही होती है सुदृढ़ जिसकी सशक्त हैं बुनियादें
 
बीते पलों के अनुभवों से प्यारे संवार दिन आज का
प्राचीन यंत्रों में मत उलझ छेड़ नया गीत नये साज का
सूर्योदय होते ही रात का अस्तित्व समाप्त हो जाना है
‘राज’ फल की चिंता से मुक्त हो मन बना नये आगाज का   



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