Gulaal: A poem by Nisha Tandon
बीत गए ना जाने सावन कितने एक अधूरी आस में 
तोड़ कर बिखेर दिया हमें तेरी जु
नज़रें ढूँढती रही तुम्हें फ़ि
रंगते थे गुलाबी तुम मुझे जब हु
रंगों से भरते थे ज़िंदगी हमारी
निकल जाएँ जिस रास्ते से लगता था मस्तानों की टोली थी 
साथ में थे तुम तो रंगों के मा
हर दिन एक नया त्योहार , वो भी 
तेरे जाने के बाद भी हर होली पर
पर बिन तेरे अब हर होली सूनी और
वक़्त बीत गया और होली एक बार फि
हर तरफ़ उल्लास और ख़ुशियों की 
इश्क़ का कहीं लाल तो कहीं ख़्
हरियाली को चीरता हुआ नीला रंग 
तुमने हमेशा चाहा कि मेरे जहाँ 
डूब जाए सूरज भले ही, पर हर दिन
तेरी ख़ुशी की ख़ातिर जीना है ह
बिता देंगे ज़िंदगी तनहा सही , 
बस यही सोच मैंने अपनी बेरंग ज़िंदगी को बदलने का मन बना लिया 
और इस साल होली में चुपके से एक
 
 
 
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