Zindagi: A poem by Dr. Sonia Gupta
ज़िन्दगी
हर घड़ी इक नया इम्तिहाँ ज़िन्दगी
मुश्किलों से भरा है तूफाँ ज़िन्दगी |
प्रश्न खुद ही करे, खुद ही उत्तर भी दे
यूँ उलझती रहे खामखाँ ज़िन्दगी |
इक तमन्ना हृदय में जगाती फिरे
ख्वाइशों से बुना आशियाँ ज़िन्दगी |
अनकहे फलसफों की कहानी लिखे
संग यादों चला कारवाँ ज़िन्दगी |
कैद सी जेल सबको कभी ये लगे
है कभी इक खुला आसमाँ ज़िन्दगी |
रंग सारे मिलें इस डगर में यहाँ
धूप खिलती, कभी ठंडी छाँ ज़िन्दगी |
ख़ूब अंदाज़ है, करती अटखेलियाँ
लफ्ज़ खामोश, दिल की जुबाँ ज़िन्दगी |
पग सम्भलकर ही धरना पड़े है यहाँ
बन चले है फ़कत, रायगाँ ज़िन्दगी |
छोड़कर ये डगर एक दिन सब चलें
बस किराये का है इक मकाँ ज़िन्दगी |
साँस सबकी थमे, धड़कनें हैं रुकें
छोड़ जाती मगर इक निशाँ ज़िन्दगी |
ज़िन्दगी की कहानी अजब ‘सोनिया’
है अनोखी बड़ी दास्ताँ ज़िन्दगी ||
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