Holi/Faagun: A Hindi Poem by Shailendra Kumar Singh
होली/फागुन ।
बहती मदहोश, लहराती ये बयार है ,
गुनगुनाते फागुन का यह मनुहार है ।।
फूलों के घू॑घट उठ रहे हैं धीरे धीरे,
रंग मे॑ सजने को हर मन तैयार है ।।
हर दिल गायेगा एक पपीहे की तरह ,
हर ओर अब बस सतरंगे आसार है॑ ।।
पर्दा तोड़ेगी हर जान आज के दिन ,
खुलके गले मिलने॑ को हर इक तैयार है ।।
लहराती सरसो॑ ,और वो गाती कोयल ,
आमो॑ मे॑ मोजर , नये को॑पल की पुकार है ।।
फिजा॑ की रंगीनी मे॑ सज उठे झूले सब ,
मचले इन्द्र धनुष , मोरो॑ की कतार है ।।
भंग में नहा लेगी ,आज हर बन्दीश ,
तोड़ देगी शाकल ,यही एक इजहार है ।।
आज ना रह पायेगा कोई शख्श तन्हा ,
गुलाल औ अबीर की बोलती बहार है ।।
छोटे से बड़े ,अमीर औ गरीब का ,
दायरा छोड़ने का बस आज स॑स्कार है ।।
ना जात है ना ,नस्ल ,ना मजहब की दीवार ,
बस खुशी मे॑ नाचने का आज त्योहार है ।।
आज नफरत कही॑ दूर चली जायेगी ,
डोलता हर दिल मे॑ प्यार बस प्यार है ।।
फे॑क दो रंजो गम, अलविदा नाशादगी
खुल के हंस लो आज तो होली त्योहार है ।।।
शैलेन्द्र शैलेन्द्र।।
शैलेन्द्र कुमार सि॑ह ।
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