वो लम्हें: ऋषिका द्वारा रचित कविता
जिसका सदियों से मैंने इंतेज़ार किया..
आँखों में उसी की तस्वीर बसाये कब से,
मोहब्बत में सारी हदों को मैंने पार किया..!
वो एहसास भी क्या अज़ब एहसास था..
बिन छुए ही तेरी छुअन को महसूस किया..
ख़ुशियाँ तुझे देकर सारी ग़म अपने नाम किया.
मोहब्ब्त में सारी हदों को मैंने पार किया..
कुछ तो निभा लिए रोते हुए वादें हमने
कुछ हँसते हुए रास्तें में ही छोड़ दिया.
. ख़ुदा से और कुछ नहीं माँगा था बस तेरे अलावे,
वो भी लम्हें आज मुठ्ठी खोल वक़्त के आगे छोड़ दिया..
वो लम्हें, इश्क़,क्या सासों को भी आज तोड़ दिया..!
ख़्वाब में खोई मीठी सी नीदें, बारिश की वो रंगीन बूँदें
प्यार के आइनों में संवरना, चाँदनी का छतों पे उतरना
चाहतों की हँसी सिलसिले, वो शिक़वे-गीले..
बीते हुए लम्हों की हर एक शाम तेरे नाम किया..
वो लम्हें जो कब से दिल के कोने में क़ैद कर रखे थे
मोहब्ब्त में आज हर एक चीज़ नीलाम किया..!!
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