प्रेम पत्र: रुचि मित्तल द्वारा रचित कविता
हाथ में कागज़ कलम ले लिख रही हूँ पल वो खास
नहीं भूल पाती वो तुम्हारा अनुराग और अहसास
संभाल कर रखी हैं वो तमाम निशानियाँ
वो तुम्हारी खुशबू से रचे-बसे प्रेमपत्र
अलमारी के तीसरे खाने की पाँचवी किताब में
जब-जब हूक उठती है हिय में तुम्हारी
पढ़ लेती हूँ उन महकते खतों को
भीनी खुशबू और भीगी निगाहों के संग
मेरे नाम के आगे बना वो दिल
आज भी धड़कनें बढ़ा देता है मेरी
खत के आखिरी में लिखा "तुम्हारा सिर्फ तुम्हारा"
काश स्वप्न पूर्ण हो पाता ये हमारा
नाम लिखा है जहाँ तुम्हारा, चूम लेती हूँ होंठो से लगा
भर कर उन्हें आलिंगन पा लेती फिर वही अनुभूति
कि तुम्हारा स्पर्श और तुम, यहीं हो पास मेरे, सदा
अहसासों में शामिल हो तुम्हीं मेरे क़ाबिल हो
तुम्हारे साँसों की महक मेरी साँसों में समाई है
मेरी धड़कनों ने धड़क तेरे दिल की सुनाई है।
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