Matritva: A poem by Anjali Srivastava
क्या कोख में एक भ्रूण सहेजना,
नियत समय तक अपने रक्त से सींचना,
निश्चित समय आने पर जन्म दे देना ,
इतनी सी ही मातृत्व की परिभाषा है?
कदापि नहीं, यह तो मात्र एक पड़ाव है,
मातृत्व तो मनःस्थिति का ठहराव है,
यह वात्सल्य की शीतल छांव है,
यह ईश्वर की प्राणी मात्र से आशा है!
जब एक नन्ही सी बच्ची भोली
प्यार से गाती अपनी ही बोली,
सुलाती गुड़िया को गा कर लोरी,
तब यह भी मातृत्व की भाषा है!
जब कोई स्त्री परायी सन्तान को,
यशोदा बन उस पर,लुटाती प्राण को,
माता सम वात्सल्य देती अनजान को,
गढ़ती हर पल मातृत्व की परिभाषा है!
कोई ऐसी भी कुमाता होती,
संतान को बोझ समझ वो ढोती,
कूड़े में उसे फेंक हाथ वो धोती
वह ईश्वर की एक बड़ी निराशा हैं!
👏wow...
ReplyDeleteThank you so much 🙏
DeleteBeautifully defined
ReplyDeleteThank you so much dear ❤
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