Raat aur din: A poem by Ratna Shridhar
मानस पटल पर अंकित,
सृष्टि रचयिता के दो विरोधाभास:
सृष्टि रचयिता के दो विरोधाभास:
सकारात्मकता और नकारात्मकता के दो आयाम |
दिन के आरंभ होते ही विहग का कलरव,
अंतहीन उड़ान की तैयारी, पथिक की अनवरत यात्रा,
गतिमान होने की सरसता |
चल अचल संसार की भव्यता ,
और दिन भर लययुक्त कार्य करने की जुझारता |
रात आते ही अस्ताचल के सूरज
के साथ अपने नीड पर पहुंचने की आकुलता |
यदि रात शब्द हीन ना होती, तो रुकना संभव ना होता
बुद्ध का गृह त्याग ,
महाभारत के युद्ध के स्थगन का शंखनाद ना होता |
अर्ध रात्रि में भारत आजाद ना होता |
उस रचयिता को शत-शत नमन जिसने गतिमान रहने,
और विश्राम करने के सहज ही दो दृष्टिकोण दिए |
चिर प्रतीक्षित रात का इंतजार है, थकान के समापन का बिंदु,
और फिर से रात के अवसान के बाद नए दिन का शुभारंभ |
दिन के आरंभ होते ही विहग का कलरव,
अंतहीन उड़ान की तैयारी, पथिक की अनवरत यात्रा,
गतिमान होने की सरसता |
चल अचल संसार की भव्यता ,
और दिन भर लययुक्त कार्य करने की जुझारता |
रात आते ही अस्ताचल के सूरज
के साथ अपने नीड पर पहुंचने की आकुलता |
यदि रात शब्द हीन ना होती, तो रुकना संभव ना होता
बुद्ध का गृह त्याग ,
महाभारत के युद्ध के स्थगन का शंखनाद ना होता |
अर्ध रात्रि में भारत आजाद ना होता |
उस रचयिता को शत-शत नमन जिसने गतिमान रहने,
और विश्राम करने के सहज ही दो दृष्टिकोण दिए |
चिर प्रतीक्षित रात का इंतजार है, थकान के समापन का बिंदु,
और फिर से रात के अवसान के बाद नए दिन का शुभारंभ |
.
Wow, awesome work! :)
ReplyDeleteAmazing work.
ReplyDeleteVery beautiful
ReplyDelete