Kansa raatri, Krishna savera: A poem by Mani Saxena
मध्य रात्रि, रोहिणी नक्षत्र में कान्हा हुए अवतरित,
बंदीगृह में बेड़ियाँ पहनी देवकी माँ भी हुई हर्षित,
चीरता हुआ काली रात, प्रकाश हो गया प्रज्वलित,
चतुर्भुज ने दिखायी राह, कारागृह हुआ प्रकाशित;
हुई कालिमा रात्रि की और गहरी, घनेरी व अँधेरी,
बेड़ियाँ टूटीं मूर्छित हुए सिपाही, पहरेदार, संत्री मंत्री,
लाडला लिए वासुदेव चल पड़े गोकुल वृंदावन नगरी,
बरसती रात, वासुकी नाग श्रीकृष्ण पर बिछाए छतरी;
पाकर लाल को गोद में माँ यशोदा के घर हुआ उजाला,
रोशनी बना सुबह की, माखनचोर ब्रज का नन्दलाला,
मथुरा नगरी में भांजे को ढूँढता ख़ूँख़ार क्रूर कंस मामा,
बुझ गयी अंधेरी रात सी मामा के अंतर्मन की ज्वाला;
बालकृष्ण की लीलाओं से मोहित हुआ ये जग सारा,
पदचिह्न जहाँ पड़े उनके, हुआ वहाँ दिन का उजियारा,
गोपियों के वस्त्र चुराए, कभी कालिया को मार गिराया,
कभी स्तनपान कर पूतना को मौत के मुँह में पहुँचाया;
अत्याचारी कंस से पीड़ित देवकी वासुदेव की हर छाया,
दुःखी देख, भांजे कृष्ण ने मामा कंस पर क़हर बरसाया,
देकर मृत्यु कंस को अधर्म पर धर्म का सवेरा जगमगाया,
कंस की काली रात से मुक्त, हर मथुरा वासी हर्षाया ।
बंदीगृह में बेड़ियाँ पहनी देवकी माँ भी हुई हर्षित,
चीरता हुआ काली रात, प्रकाश हो गया प्रज्वलित,
चतुर्भुज ने दिखायी राह, कारागृह हुआ प्रकाशित;
हुई कालिमा रात्रि की और गहरी, घनेरी व अँधेरी,
बेड़ियाँ टूटीं मूर्छित हुए सिपाही, पहरेदार, संत्री मंत्री,
लाडला लिए वासुदेव चल पड़े गोकुल वृंदावन नगरी,
बरसती रात, वासुकी नाग श्रीकृष्ण पर बिछाए छतरी;
पाकर लाल को गोद में माँ यशोदा के घर हुआ उजाला,
रोशनी बना सुबह की, माखनचोर ब्रज का नन्दलाला,
मथुरा नगरी में भांजे को ढूँढता ख़ूँख़ार क्रूर कंस मामा,
बुझ गयी अंधेरी रात सी मामा के अंतर्मन की ज्वाला;
बालकृष्ण की लीलाओं से मोहित हुआ ये जग सारा,
पदचिह्न जहाँ पड़े उनके, हुआ वहाँ दिन का उजियारा,
गोपियों के वस्त्र चुराए, कभी कालिया को मार गिराया,
कभी स्तनपान कर पूतना को मौत के मुँह में पहुँचाया;
अत्याचारी कंस से पीड़ित देवकी वासुदेव की हर छाया,
दुःखी देख, भांजे कृष्ण ने मामा कंस पर क़हर बरसाया,
देकर मृत्यु कंस को अधर्म पर धर्म का सवेरा जगमगाया,
कंस की काली रात से मुक्त, हर मथुरा वासी हर्षाया ।
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