Saawan Aayaa Jhoom ke: A poem by Shivesh Shivkumar
कोपाग्नि के संताप से आकुल है ऋतु चक्र
तपन ने आकाशी मेघो को छू लिया घूम के!
क्रंदन तपिश में भैरवराग की भवें हुई वक्र
ठिठकी पावस की दुल्हन को लिया चूम के !!
आहत हुये तृषार्त मरीचिका के मृग मरुथल
कंक्रीटी बसाहट मेँ जलहीन सरोवर भूम के !
अपनी माटी के ममत्व से वंचित हुआ बचपन
पीढियां संस्कारहीन हुई आये फिर पर्व धूम के!!
परिवेश को मत करें विखण्डित उसे संवारें
कण-कण सुवासित क्षण महके द्रूम द्रुम के !
कपासी बादल स्नेह संवलसूत्र मेँ हुये संघनित
ऐसे हुये दिलों के मिलन आये बादल झूम के!!
विद्रूपता न बिखरे प्रकृति के सुरम्य प्रसारण मेँ
बून्द बून्द अस्तित्व समेटे सौन्दर्य भाव घूम के !
सहेजना होगा बारिश की खुशियों संजीदगी संग
महसूस कर लें आये पावस के नाद चूम के !!
विपदाओं की प्रबल चुनौतियों मेँ संभलना होगा
हर एक उत्स धार मेँ पावस गीत उभरे धूम के !
प्रकृति के सुष्मित आनन आनन मेँ मेघमाला
आयें स्वागत करें उनका आये बादल झूम के !!
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