Waqt waqt ki baat hai: A poem by Sheela S. Iyer


वक़्त के पास ही वक़्त नहीं है रुक जाने के लिए
फिर कैसे किसी से उम्मीद करे हमे वक़्त देने के लिए?
वक़्त किसी का सगा नहीं होता
वक़्त के साथ जो नहीं चल पाया, वो पीछे है रह जाता.

कमबख्त वक़्त किसी के लिए थमा है
ही गुज़रा वक़्त किसी के लिए फिर लौटा है.
वक़्त तो अपने समय पर आएगा और बीत जायेगा
कहा वो थमने वाला है, वो तो रेत की तरह फिसल जायेगा.

समय के साथ ही चलना है
ना आगे निकल जाएंगे ना पीछे रह जाना है.
एक किस्सा है आपको बतलाना
सब कुछ तुम लूटना.

बेटी की हर ख्वाहिश पूरी की ज़िन्दगी भर
लेकिन वक़्त आने पर उसने देखा मुड़कर.
बुरा वक़्त जब दस्तक देता है, तब अपने भी पराये हो जाते है
अचे वक़्त के चलते, पराये भी अपने हो जाते है.

आज हम पहुंचे वृद्ध आश्रम
क्या इसलिए किया हमने ज़िन्दगी भर श्रम?
अब ये ज़िन्दगी बोझ लगने लगी है
माना, वक़्त वक़्त की बात है, पर क्या ये दुनिया की रीत है?
                                                                                
जब हमारी ज़िन्दगी खुशहाल थी, तब सबको अपने पास पाए
आज जब हम खैरियत नहीं, तो कोई करीब नहीं आना चाहे.
इसलिए कहते है की, वक़्त वक़्त की बात है
कभी कभी खुद की परछाई भी छोड़ देती साथ है




Comments

Popular posts from this blog

A stranger: A poem by Preeti S Manaktala

The book of my life: A poem by Richa Srivastava

The tree house: A story by Neha Gupta