Uphaar: A poem by Monika Kapur

कल कल करती निर्मल नदियाँ ,
अमृत का सृजन नित करती ।
गगन चूमते ऊँचे पर्वत, 
अन्न उपजाती पावन धरती ।
रंग बिखराते पुष्प सुहाने ,
फल से लदे वृक्ष मनोहर ।
नीलमणि सा शोभित नभ है ,
ममता से भरी धरा है सुंदर ।
भाँति भाँति के वन्य जीव हैं ,
खग मतवाले नभ के प्यारे ।
भ्रमरों का गुंजन मनभावन ,
रात्रि के  हैं मित्र सितारे ।
जीवन, सांसें, हृदय का स्पंदन ,
ये सब हैं उपकार तेरा माँ,
है तू जीवनदायनी हे प्रकृति ,
धन्य है हर उपहार तेरा माँ


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