Shaman: Ghanghor aalima ka Ahwaahan: Antarman ki Lalima ka: A poem by Balika Sengupta
**"शमन : घनघोर कालिमा का**
आह्वान. :अंतरमन की लालिमा का" ***
******************************
तपस्वी सा जलता , वो दीया ,
ध्यानमग्न, समाधिष्ठ, तप में मगन ,ध्यान की अगन
प्रज्जवलन की लगन, प्रेम की तपन ,
अंधरो के भीमकाय पर्वतों की चोटी पर ,
फहराया उसने उजियारे का झंडा,
थी शूल चूभोति , हवा- हिमपात , न डाल पायी शिलाव़ष्टि
उस पर अपनी कुटिल द़़ष्टि , रचाई उसने उजाले की सृष्टि ,
उजाले का नया संसार बुना , शाति प्रेम का परिवार चुना ,
हर दीपक का दर्द सुना , और सुनाया अमर शास्वत संगीत ,
धुन गाया ,गुन गुन गुनगुनाया, कालातीत
हर दीपक से प्यार मिला ,
गिले शिकवे हुए दूर ,काफिला आगे चला
अधेरा ठिठका, पीछे जा हटा, पछताया ,हाथ मला ,
अब कहो ,हम क्यों न जागे भला ,
सुनों ,शब्दो के मधुर दीपक जलाना, है दिलो को मोम सा गलाना ,
आपस में स्नेहपूर्ण मिलना , मिलाना, हो विचारों का तालमेल बिठाना
संकल्पो संग हो जीना , न हो अंधेरों से डरकर जीते जी मरना ।
है होगा आज इनका सामना करना ,
दिलो के हर पुष्प का खिलना खिलाना, मरते मरते को जिलाना ,
ला उजियारे का नूतन संदेश ,नव प्राण फूंकना ,
न बचे कोई गांठ, हो सुलह ,सुलझे, हो शातिपुर्ण जुड़ाव ,
रूहानी लेप से हर जख्म भरना,अलगाव सिलना,ऐसी बंधे डोर , ऐसी हो प्रेरणा,
अहो आज बनकर के कृष्ण,है हर अधियारा रूपी सर्प लीलना ।।
आह्वान. :अंतरमन की लालिमा का" ***
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तपस्वी सा जलता , वो दीया ,
ध्यानमग्न, समाधिष्ठ, तप में मगन ,ध्यान की अगन
प्रज्जवलन की लगन, प्रेम की तपन ,
अंधरो के भीमकाय पर्वतों की चोटी पर ,
फहराया उसने उजियारे का झंडा,
थी शूल चूभोति , हवा- हिमपात , न डाल पायी शिलाव़ष्टि
उस पर अपनी कुटिल द़़ष्टि , रचाई उसने उजाले की सृष्टि ,
उजाले का नया संसार बुना , शाति प्रेम का परिवार चुना ,
हर दीपक का दर्द सुना , और सुनाया अमर शास्वत संगीत ,
धुन गाया ,गुन गुन गुनगुनाया, कालातीत
हर दीपक से प्यार मिला ,
गिले शिकवे हुए दूर ,काफिला आगे चला
अधेरा ठिठका, पीछे जा हटा, पछताया ,हाथ मला ,
अब कहो ,हम क्यों न जागे भला ,
सुनों ,शब्दो के मधुर दीपक जलाना, है दिलो को मोम सा गलाना ,
आपस में स्नेहपूर्ण मिलना , मिलाना, हो विचारों का तालमेल बिठाना
संकल्पो संग हो जीना , न हो अंधेरों से डरकर जीते जी मरना ।
है होगा आज इनका सामना करना ,
दिलो के हर पुष्प का खिलना खिलाना, मरते मरते को जिलाना ,
ला उजियारे का नूतन संदेश ,नव प्राण फूंकना ,
न बचे कोई गांठ, हो सुलह ,सुलझे, हो शातिपुर्ण जुड़ाव ,
रूहानी लेप से हर जख्म भरना,अलगाव सिलना,ऐसी बंधे डोर , ऐसी हो प्रेरणा,
अहो आज बनकर के कृष्ण,है हर अधियारा रूपी सर्प लीलना ।।
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